उदयपुर के वैज्ञानिक कोठारी बोले 1 रुपया तनख्वाह लूंगा
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नोबेल विजेता अर्नेस्ट रदरफोर्ड चाहते थे कोठारी यहीं रुके
उदयपुर.आज हम राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मना रहे है। डॉ. दौलत सिंह कोठारी ये नाम आते ही सब विज्ञान की तरफ चले जाते है। देश में विज्ञान और शिक्षा को लेकर कोठारी ने जो काम किया और मुकाम हासिल किया वह अपने आप में अव्वल है।
कोठारी राजस्थान के उदयपुर से आते है और वे देश के पहले भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के वैज्ञानिक सलाहकार बने थे। वे शिक्षा के क्षेत्र में कई पदों पर काम कर चुके और तत्कालीन प्रधानमंत्री उनको केन्द्र में मंत्री और राष्ट्रपति बनाना चाहते थे लेकिन वे अपने काम में ही डटे रहे।
उदयपुर मूल के कोठारी के बारे में आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर उनके जीवन से जुड़े कई संस्मरण पढ़िए। इसमें अधिकतर ऐसे है जो आज के जीवन में मिलना मुश्किल ही है। आज उनके जीवन के बारे में वह सब कुछ जानेंगे जिसमें उनके संघर्ष, सफलता से लेकर आगे बढ़े कदम शामिल है।
मां ने घट्टी चलाकर पढ़ाया
डीएस कोठारी के पिता फतहलाल कोठारी का निधन होने के बाद उनको पढ़ाने के लिए उनकी पत्नी ने उस समय घट्टी चलाने, सिंलाई और कागज की थैलियां बनाकर अपना गुजारा चलाती थी। डीएस कोठारी के तीन भाई मदन सिंह, दूल्हे सिंह व प्रकाश सिंह भी तब पढ़ाई कर रहे थे।
उदयपुर के पहले कॉलेज के पहले बैच में टॉप किया
डीएस कोठारी के पिता के मित्र और तत्कालीन इंदौर राज्य के मुख्यमंत्री सिरेहमल बापना ने दौलत सिंह को अपने बच्चों के साथ रहने और पढ़ने के लिए इंदौर बुला लिया था। कोठारी ने 1922 में इंदौर के महाराजा शिवाजी हाई स्कूल से मैट्रिक पास किया और वे वापस उदयपुर आ गए। उसी समय उदयपुर में पहला सरकारी कॉलेज खुला। गुलाब बाग में महाराणा कॉलेज में उन्होंने प्रवेश लिया और इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की। तब वे राजपूताना बोर्ड में टॉपर रहे थे। यहीं नहीं कोठारी ने साइंस के तीनों विषय भौतिकी, रसायन और गणित में विशिष्ट योग्यता प्राप्त की।
महाराणा फतहसिंह प्रभावित हुए और 50 रुपए स्कॉलरशिप दी
कोठारी के इंटरमीडिएट टॉपर रहने पर तत्कालीन उदयपुर के महाराणा फतहसिंह ने उनको 50 रुपए की स्कॉलरशिप देने की घोषणा की। तब यह राशि पढ़ाई के लिए बहुत होती थी। कोठारी यहां से पढ़ने के लिए इलाहाबाद विश्विद्यालय चले गए। वहां उन्होंने बीएसएस और एमएससी परीक्षा पास की। एमएससी में पहला स्थान प्राप्त करने वाले कोठारी इलाहाबाद विवि के भौतिकी विभाग में डिमांस्ट्रेटर के पद पर कार्य करना शुरू किया।
पद्म भूषण और पद्म विभूषण दिया गया था
उदयपुर में 6 जुलाई 1906 को जन्मे कोठारी का निधन 4 फरवरी 1993 को जयपुर में हुआ। उनको पद्म भूषण (1962) और पद्म विभूषण (1973) में दिया गया था।
देश के इन बड़े पदों पर काम किया कोठारी ने
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रथम अध्यक्ष (10 वर्ष तक)
- वैज्ञानिक शब्दावली आयोग के प्रथम अध्यक्ष
- राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1964-1966) अध्यक्ष
- भारत में न्यूक्लियर मेडिसिन के जनक
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के प्रथम अध्यक्ष रहे
- 1963 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के स्वर्ण जयंती सत्र अध्यक्ष बने
- भारतीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष रहे
- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। (10 वर्ष तक)