नई दिल्ली के इंटरनेशनल सेंटर फॉर कथकली की प्रस्तुति
उदयपुर। महाभारत के महायुद्ध को नहीं होने देने के उदृेश्य से श्रीकृष्ण के पांडवों के दूत बनकर कौरवों के पास जाने के शांति मिशन की असफलता के बाद, कौरवों—पांडवों की सेनाएं कुरुक्षेत्र में आमने सामने खड़ी हैं। सामने सभी बड़ों और गुरु को देख मोहपाश में फंसा अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछता है कि अपने ही रिश्तेदारों को मारकर युद्ध जीतने से क्या लाभ! सोचता है लौट जाएं।
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि एक क्षत्रिय के रूप में उसे धर्म के लिए युद्ध करना है। मौत और हत्या को सही परिप्रेक्ष्य में समझना होगा। आत्मा मरती नहीं है, यह केवल शरीर को छोड़ती है, ठीक उसी तरह से जैसे कि नए कपड़े पुराने को छोड़कर पहने जाते हैं। अर्जुन में साहस और आत्मविश्वास भरने के लिए, भगवान कृष्ण अपना विराट रूप दिखाते हैं।अर्जुन देखता है कि भगवान के विराट रूप का न आरंभ, ना अंत है। वह सत्य को पूर्ण मात्रा में देखता है। इस सत्य के साक्षात दर्शन के बाद अर्जुन मोह मुक्त हो युद्ध के लिए तैयार हो जाता है। नई दिल्ली के इंटरनेशनल सेंटर फॉर कथकली की नृत्य नाटिका ‘गीतोपदेशम’ की प्रस्तुति का में यह दृश्य यहां शिल्पग्राम उत्सव के दौरान मुक्ताकाशी मंच पर महाभारत कथा को जीवंत कर गया। यह वृहद आयोजन पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की ओर से किया जा रहा है।
रौद्र भीम ने दुशासन के लहू से धोए द्रौपदी के केश—
इसी नृत्य नाटिक के अंतर्गत द्रौपदी की प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण से विशेष शक्तियां प्राप्त कर रौद्र भीम के रूप में कुरुक्षेत्र में दुशासन को मारने के बाद उसका लहू पीता है और द्रौपदी को वहीं बुलाकर उसके केश उस खून से धोकर उसके केश बांधता है। इतने भयंकर अमानवीय प्रतिशोध के लिए भीम कृष्ण से क्षमा मांगता है। ज्ञीकृष्ण उसे क्षमा कर आशीर्वाद देते हैं।
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सामूहिक शास्त्रीय पेशकश ने मोहा—
अंत में कथकली, भरतनाट्यम और मोहिनी अट्टम के डांसर्स ने मिलकर एक सामूहिक नृत्य पेश किया। इसमें तीनों अलग विधाओं के नृत्य होने के बावजूद जो बेहतरीन तालमेल देखा गया, वह काकाबिले तारीफ रहा। इस प्रस्तुति के बाद तीनों दलों को पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर की निदेशक किरण सोनी गुप्ता और अन्य अतिथियों ने पोर्टफोलियो दे शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
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