गोले दागने वाली फंगस के रूप में है पहचान

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राजस्थान में पहली बार दिखी
स्पिरोबोलस जयसुखियेंसिस

जैव विविधता की दृष्टि से अति
महत्वपूर्ण है यह खोज

फंगस। फाईल फोटो स्पिरोबोलस जयसुखियेंसिस।उदयपुर, 3 सितंबर। दक्षिणी राजस्थान के मांडलगढ़ क्षेत्र के राजपुरा गांव में एक अद्भुत खोज हुई है। फाउंडेशन साइकोलॉजिकल सिक्योरिटी के फील्ड इकोलॉजिस्ट डॉ. अनिल सरसावन और उदयपुर के पर्यावरण वैज्ञानिक व सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक डॉ. सतीश शर्मा ने यहां एक अनोखी फंगस की खोज की है। इस फंगस का वैज्ञानिक नाम स्पिरोबोलस जयसुखियेंसिस है, लेकिन स्थानीय लोगों के बीच इसे ’गोले दागने वाली फंगस’ के नाम से जाना जाता है।
क्यों कहते हैं इसे ’गोले दागने वाली फंगस’?

डॉ. सतीश शर्मा

सेवानिवृत्त वन अधिकारी डॉ सतीश शर्मा ने बताया कि जब इस फंगस को छुआ जाता है तो यह छोटे-छोटे काले रंग के गोले यानी बीजाणुओं की तेजी से बरसात करती है, मानो कोई तोप गोले दाग रही हो। यही कारण है कि इसे अंग्रेजी में ’आर्टिलरी फंगस’ कहा जाता है। अगर आप सफेद कपड़े पहने हुए इस फंगस को छू लें तो ये गोले आपके कपड़ों पर चिपक जाएंगे और दूर से ही दिखाई देंगे।
भारत में दूसरी बार दर्ज की गई उपस्थिति
डॉ सरसावन और डॉ शर्मा के मुताबिक राजस्थान में इसकी उपस्थिति पहली बार और भारत में दूसरी बार दर्ज की गई है। इससे पहले भारत में इस फंगस की उपस्थिति गुजरात में 2020 में दर्ज की गई थी। मांडलगढ़ के राजपुरा गांव में तालाब के किनारे जमा कचरे में यह फंगस पाई गई। इस शोध को तमिलनाडु से प्रकाशित स्पीशीज जर्नल के 25वें अंक में प्रकाशित किया गया है।
अति महत्वपूर्ण है यह खोज

डॉ. अनिल सरसावन।

डॉ सरसावन और डॉ शर्मा के अनुसार इस शोध से यह साफ हो गया है कि जैव विविधता सिर्फ संरक्षित क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है बल्कि हमारे गांवों के खेतों, तालाबों और चरागाहों में भी भरपूर पाई जाती है। हमें इन शामलात संसाधनों के महत्व को समझना होगा और इन पर लगातार शोध करते रहना होगा ताकि कई अज्ञात प्रजातियों को सामने लाया जा सके व संरक्षण किया जा सके।

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