जन्ममरण से न्यारे हैं परमात्मा: राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी

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– मनमोहिनीवन परिसर में 88वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती महोत्सव मनाया
– शिव ध्वजारोहण कर कराया सद्मार्ग पर चलने का संकल्प

आबू रोड। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के मनमोहिनीवन परिसर में 88वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। महोत्सव में मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी व अन्य वरिष्ठ भाई-बहनों ने शिव ध्वजारोहण कर सभी को सद्मार्ग पर चलने का संकल्प कराया।
इस दौरान दादी रतनमोहिनी ने कहा कि विश्व की सभी महान विभूतियों के जन्मोत्सव मनाए जाते हैं, लेकिन परमात्मा शिव की जयंती को जन्मदिन न कहकर शिवरात्रि कहा जाता है, आखिर क्यों? इसका अर्थ है परमात्मा जन्ममरण से न्यारे हैं। वह अकर्ता, अभोक्ता हैं। उनका किसी महापुरुष या देवता की तरह शारीरिक जन्म नहीं होता है। वह अलौकिक जन्म लेकर अवतरित होते हैं। उनकी जयंती कर्त्तव्य वाचक रूप से मनाई जाती है। जब- जब इस सृष्टि पर पाप की अति, धर्म की ग्लानि होती है और पूरी दुनिया दु:खों से घिर जाती है तो गीता में किए अपने वायदे अनुसार परमात्मा इस धरा पर अवतरित होते हैं। सहज राजयोग और सच्चा गीता ज्ञान देकर मनुष्य आत्माओं को तमोप्रधान से सतो प्रधान बनने की शिक्षा देते हैं।
कार्यकारी सचिव बीके डॉ. मृत्युंजय भाई ने कहा कि वर्तमान में नई सृष्टि के सृजन का संधिकाल चल रहा है। इसमें सृष्टि के सृजनकर्ता स्वयं नवसृजन की पटकथा लिख रहे हैं। वह इस धरा पर आकर मानव को देव समान स्वरूप में खुद को ढालने का गुरुमंत्र राजयोग सिखा रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात दुनिया की यह सबसे बड़ी और महान घटना बहुत ही गुप्त रूप में घटित हो रही है। वक्त की नजाकत को देखते हुए जिन्होंने इस महापरिवर्तन को भाप लिया है वह निराकार परमात्मा की भुजा बनकर संयम के पथ पर बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या एक दो नहीं बल्कि लाखों में है। इन्होंने न केवल परमात्मा की सूक्ष्म उपस्थिति को महसूस किया है वरन इस महान कार्य के साक्षी भी हैं।
मीडिया विंग के उपाध्यक्ष बीके आत्मप्रकाश भाई ने कहा कि विश्व के प्राय: सभी धर्मां के लोग परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। सभी मानते हैं परमात्मा एक है। सर्वशक्तिमान परमात्मा के बारे में एक बात सर्वमान्य है कि परमात्मा ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप हैं। इस संबंध में केवल भाषा के स्तर पर ही मतभेद हैं, स्वरूप के संबंध में नहीं। शिवलिंग का कोई शारीरिक रूप नहीं है क्योंकि यह परमात्मा का ही स्मरण चिंह्न है।
मेडिकल विंग के सचिव डॉ. बनारसी लाल ने कहा कि शिव का शाब्दिक अर्थ है ‘कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है प्रतिमा अथवा चिंह्न। अत: शिवलिंग का अर्थ हुआ कल्याणकारी परपपिता परमात्मा की प्रतिमा। प्राचीन काल में शिवलिंग हीरों (जो कि प्राकृतिक रूप से ही प्रकाशवान् होते हैं) के बनाए जाते थे, क्योंकि परमात्मा का रूप ज्योतिर्बिन्दु है। सोमनाथ के मंदिर में सर्वप्रथम संसार के सर्वोत्तम हीरे कोहिनूर से बने शिवलिंग की स्थापना हुई थी। विभिन्न धर्मों में भी परमात्मा को इसी आकार में मान्यता दी गई है।
आवास निवास के प्रभारी बीके देव भाई ने कहा कि कर्म में ही योग को शामिल कर कर्मयोगी, राजयोगी जीवनशैली को अपनाना होता है। जब हम मन को एकाग्र कर खुद को आत्मा समझकर निरंतर परमात्मा को याद करते हैं तो उनकी शक्तियों से आत्मा पर लगी विकारों, पापकर्म की मौल धुलती जाती है। धीरे-धीरे एक समय बाद आत्मा, परमात्मा की शक्ति से संपूर्ण पावन, पवित्र और सतोप्रधान अवस्था को प्राप्त कर लेती है। इस मौके पर साइंटिस्ट एंड इंजीनियरिंग विंग के अध्यक्ष बीके मोहन सिंघल भाई, भोपाल जोन की निदेशिका बीके अवधेश दीदी, छतरपुर क्षेत्र की निदेशिका बीके शैलजा दीदी सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।  संचालन बीके आनंद भाई ने किया।

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