उदयपुर, 3 मार्च 2024। रविवार को शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर द्वारा आयोजित मासिक नाट्य संध्या ‘रंगशाला’ में ‘उनकी चिट्ठियां’ नाटक का मंचन हुआ।
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर के निदेशक फुरकान खान ने बताया कि माह के प्रथम रविवार को आयोजित होने वाले मासिक नाट्य संध्या रंगशाला के तहत जयपुर की स्माइल एंड होप संस्था द्वारा ‘उनकी चिट्ठियां’ नाटक का प्रदर्शन किया गया। इस नाटक में मानवीय संवेदनाओं, स्नेह एवं प्यार का बड़ा ही सुंदर समावेश है। इस नाटक के कथानक में विमंदित बच्चे और एक फौजी के जीवन की दो मार्मिक कहानियां बताई गई। इस नाटक के लेखक तपन भट्ट एवं निर्देशक डॉ. सौरभ भट्ट है। इस नाटक में 11 कलाकारों ने भाग लिया। दर्शकों ने इस नाटक को बहुत सराहा।
इस अवसर पर केन्द्र के पूर्व कार्यक्रम अधिकारी विलास जानवे, सुनिल मित्तल रंगकर्मी एवं राकेश शर्मा वरिष्ठ छाया चित्रकार ने कलाकारों का अभिनन्दन किया। कार्यक्रम का संचालन सिद्धांत भटनागर ने किया। इस अवसर पर केन्द्र के अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।
नाटक का कथानक
नाटक में के प्रारंभ में एक पोस्टमेन अपने दर्द को बयाँ करते हुआ बताता है की आजकल खत और चिट्ठियां कोई लिखता ही नहीं भाई, मगर एक समय में प्यार और अपनेपन का एहसास होती थी चिट्ठियाँ । और फिर वो अपने झोले से कुछ ऐसी ही प्यार भरी कुछ चिट्ठियां निकालकर पढ़ता है और दर्शकों को दो कहानी सुनाता है ।
पहली कहानी
एक बच्चा चिंटू जो पैदायशी विमंदित है, जिसका सब उपहास उड़ाते है, वो अपने दूसरे भाई रोहन, जो की शारीरिक रूप से सामान्य है, से बहुत प्यार करता है। मगर रोहन उससे नफरत करता है, उसे बात-बात पे मारता है, उसे अपना भाई नहीं दुश्मन समझता है और अपने मित्रों के साथ मिलके उसे जंगल में छोड़ने का प्लान बनाता है। अंत में चिंटू एक चिट्ठी लिखकर चला जाता है। नाटक में दर्शाया गया कि आज भी हमारे सभ्य सामाज में ऐसे अनेक लोग है जो जन्मजात विकलांगता का मजाक बनाते है अब चाहे वो विकलांगता शारीरिक हो या मानसिक। कहानी में दोनों भाइयो के इसी आपसी टकराव का अत्यंत भावनात्मक चित्रण नाटक में प्रस्तुत किया गया।
दूसरी कहानी
नाटक की दूसरी कहानी में एक फौजी की जिंदगी का मार्मिक चित्रण किया गया द्य कहानी का मुख्य पात्र टॉम एक बहादुर सैनिक है, और पूरी फ़ौज का चहेता है एक युद्ध के दौरान बुरी तरह घायल हो जाता है डाक्टर उसे जैसे-तैसे बचाते है, किन्तु ऑपरेशन से उसका चेहरा विकृत और भयानक हो जाता है। जिससे सभी फ़ौज के जवान साथी उसे पहचानने से मना कर देते है और टॉम को मरा हुआ मान लेते हैं। टॉम ये जानने के लिए कि उसे घर में भी कोई पहचानेगा या नहीं, वो खुदका मित्र बनके अपने घर जाता है और वहां भी उसे निराशा हाथ लगती है वो वापिस छावनी लौट आता है। वहां उसे उसे दुनिया के सबसे सुन्दर आदमी के नाम तीन पत्र मिलते हैं जो उसकी माँ-बाप और पत्नी के होते हैं। टॉम वापिस घर लौटता है।
नाटक में टॉम के मन के किरदार को भी दिखाया गया। टॉम और उसके मन के आपसी संवाद और चिट्ठी पढ़ने वाले दृश्य दिल को छूने वाले थे ।
टॉम के किरदार को स्वयं निर्देशक डॉ सौरभ भट्ट और उसके मन के किरदार को विशाल भट्ट ने बहुत ही खूबसूरती से निभाया कई दृश्यों में तो वो दर्शकों को रुला गए।