उदयपुर, 25 फरवरी। कृषि संरचना एवं पर्यावरण प्रबंधन में प्लास्टिक के अभियांत्रिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 19वीं वार्षिक कार्यशाला शुरू हुई। कार्यशाला का आयोजन एमपीयूएटी उदयपुर एवं सीफेट, लुधियाना के संयुक्त तत्वाधान में किया जा रहा है। कार्यशाला के शुभारंभ पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक डॉ. एस. एन. झा ने
अपने अध्यक्ष उद्बोधन में कहा कि राजस्थान में कृषि अभियंताओं ने जल ग्रहण विभाग में काफी अच्छे काम किए हैं, जिसे राजस्थान के किसानों को बहुत फायदा हुआ है। उन्होंने राजस्थान में कृषि यंत्रीकरण पर विशेष ध्यान देने की बात कही। डॉ.झा ने कहा कि वर्तमान में विश्व भर में कृषि उत्पादन के संस्करण एवं प्रबंधन पर ध्यान दिया जा रहा है, राजस्थान में भी कृषि उत्पाद के प्रोसेसिंग पर ध्यान दिया जाकर किसानों के आय में वृद्धि की जा सकती है।
*2047 तक 75% फॉर्म को मैकेनाइज्ड करना होगा*
उन्होंने कहा कि वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए हमें 75% फॉर्म को मैकेनाइज्ड करना होगा क्योंकि भविष्य में युवा कृषि कार्य करने के लिए कम उपलब्ध रहेंगे। राजस्थान के किसानों का भविष्य सुधारने एवं किसानों की आय बढ़ाने हेतु राजस्थान सरकार से अनुरोध है कि राजस्थान के किसानों की खेती को आसन एवं प्रॉफिटेबल बनाने एवं भविष्य में सबसे आगे रहने के लिए राजस्थान में पृथक से कृषि अभियांत्रिकी विभाग हो जो डायरेक्ट कृषि अभियांत्रिकी के अंतर्गत हो।
*कृषि अभियांत्रिकी विभाग अलग से बनाया जाए*
डॉ झा ने बताया कि भारत सरकार के कृषि मंत्री द्वारा भी राजस्थान के मुख्यमंत्री से निवेदन किया हुआ है कि कृषि अभियांत्रिकी विभाग अलग से बनाया जाए, भारत सरकार कि कृषि पर संसद की स्थाई समिति ने भी अनुशंसा कि है कि हर पंचायत स्तर पर कृषि यांत्रिकीकरण को बढ़ावा दिया जाए इसके लिए प्रत्येक पंचायत स्तर एवं ब्लॉक स्तर पर कृषि अभियंता की पृथक से कृषि अभियांत्रिकी विभाग बनाकर नियुक्ति की जाए जिससे किसानों के खेत आधुनिक यांत्रिकीकरण होगा एवं उनके उत्पाद की प्रोसेसिंग होकर वैल्यू एडिशन होने से उनको अधिक पैदावार एवं अधिक आय होगी। किसानों के खेत में मैकेनाइजेशन प्रोसेसिंग एवं वैल्यू एडिशन से आय दोगुनी होगी। अतः राजस्थान सरकार को भी अन्य राज्यों की तरह पृथक से कृषि अभियांत्रिकी विभाग का गठन करना चाहिए। वर्तमान में मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में अलग से विभाग बना हुआ है तथा छत्तीसगढ़ में हाल ही में अलग से विभाग के गठन करने की घोषणा की है ।
*किसानों को मिलेगी सुविधाएं, बढ़ेगी गुणवत्ता*
कृषि अभियांत्रिकी विभाग मुख्य तौर से किसानों को दी जाने वाले सभी तकनीक आदान को सीधे तौर पर किसान के खेतों तक पहुंचाना, गुणवत्ता बनाए रखना, खेतों को यांत्रिकीकरण करवाना एवं उनके उत्पादों की प्रोसेसिंग, मुल्य वर्धन करवाना, किसानो प्रशिक्षण सहित सभी समस्याओं का निवारण पंचायत और ब्लॉक लेवल पर कर भारत सरकार के मिशन 2047 के अनुसार 75% फॉर्म को पूर्णतया मैकेनाइज्ड फॉर्म में परिवर्तित के अहम भूमिका निभायेगे। जो वर्तमान में बढ़ती आबादी की दर एवं अन्य रिसोर्सेसन की होती कमी को ध्यान में रखते हुए देश को आत्मनिर्भर बनाएंगे।
*प्लास्टिक का विवेकपूर्ण उपयोग कृषि के क्षेत्र में वरदान सिद्ध हो रहा है-कर्नाटक*
कार्यशाला के मुख्य अतिथि डॉ अजीत कुमार कर्नाटक कुलपति महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर ने बताया कि प्लास्टिक का विवेकपूर्ण उपयोग कृषि के क्षेत्र में वरदान सिद्ध हो रहा है निश्चित ही प्लास्टिक का पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव रहता है परंतु इसका विवेक पूर्ण उपयोग अन्य पदार्थों का एक सस्ते विकल्प के रूप में अपनी पहचान पूरे विश्व में बन चुका है। डॉ कर्नाटक ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं राज्य कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक संयुक्त रूप से उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। जिसके परिणाम स्वरूप भारत आज खाद्य पदार्थों के उत्पादन में आत्मनिर्भर तो हो ही चुका है तथा निर्यात में भी कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।
*विभिन्न विशेषज्ञों ने किया संबोधित*
कार्यशाला में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के अतिरिक्त निदेशक डॉ के नरसिया ने वैज्ञानिकों से तकनीकी नवाचार करने एवं उसके आर्थिक पक्ष को संज्ञान में रखते हुए लागत कम करने आह्वान किया। सीफेट लुधियाना के निर्देशक डॉ. नचिकेत कोतवाली वाले ने सदन को संबोधित करते हुए कहा कि जन मानस में प्लास्टिक को लेकर काफी भ्रांतियां हैं जबकि विवेकपूर्ण व जिम्मेदारी पूर्वक उपयोग प्लास्टिक की उपयोगिता बढ़ता है । डॉ नचिकेत ने वैज्ञानिकों को बहुआयामी अनुसंधान कार्यों को एक छत के नीचे लाकर सामूहिक प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। कार्यालय में परियोजना समन्वयक सीफैट डॉ राकेश शारदा ने परियोजना का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने नई तकनीक की जानकारी दी। कार्यशाला में भारतीय जल प्रबंधन संस्थान न्यू दिल्ली के पूर्व परियोजना निदेशक टी. बी.एस राजपूत एवं इंजीनियर आनंद झांबरे, कार्यकारी निदेशक एनसीपीएएच, नई दिल्ली विशेषज्ञ के रूप में भाग ले रहे हैं जो की नई परियोजनाओं एवं वार्षिक प्रतिवेदन की समीक्षा करेंगे।
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ अरविंद वर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया एवं उदयपुर केंद्र की वर्षभर की उपलब्धियां का संक्षिप्त विवरण दिया। डॉ. ने प्लास्टिक का कृषि में संभावित उपयोगों पर चर्चा करी। प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय अधिष्ठाता डॉ पीके सिंह ने विश्व भर में जल संरक्षण में प्लास्टिक लाइनिंग व अन्य प्लास्टिक उपकरणों का महत्व बताया एवं अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यशाला में परियोजना के राष्ट्र भर में 14 केंद्र अपनी वर्ष भर का प्रतिवेदन प्रस्तुत किए।