पश्चिम क्षेत्र संस्कृति केंद्र, उदयपुर- शिल्पग्राम में ‘ऋतु बसंत’ उत्सव

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वायलिन और संतूर की संगत और सौरभ की गायकी ने शाम बनाई सुरमई

-संतूर-वायलिन के साथ तबले की खूबसूरत संगत ने जुगलबंदी को बनाया तिगुलबंदी
– संतूर पर मजूमदार, वायलिन पर असगर हुसैन का तबले पर साथ दिया अख्तर हसन ने
-ग्वालियर, बनारस और किराना घराने से जुड़े सौरभ ने राग पूरिया कल्याण से बांधा समां

उदयपुर।
किसी संगीत समीक्षक ने कहा है कि साज तो दुनिया में बहुत हैं, लेकिन संतूर और वायलिन की मौसिकी में जो मदहोशी है, वो शायद ही किसी अन्य साज में मिले। फिर, अगर इन दोनों वाद्ययंत्रों की संगत तो इसे द्विगुणित कर देती है। इसी की बानगी शनिवार को यहां शिल्पग्राम के मुक्ताकाशी रंगमंच पर देखने को मिली, जब दुनिया भर में मशहूर संतूर वादक राजकुमार मजूमदार और वर्तमान में देश के सर्वश्रेष्ठ वायलिन वादक आंके गए  उस्ताद असगर हुसैन ने जुगलबंदी का जादू चलाया।
अपनी अद्वितीय प्रदर्शन शैली और ध्वनि क्षमता के साथ ही दोनों हाथों से संतूर बजाने की आत्मिक शैली में महारत से खास पहचान बनाने वाले देश के बहुमुखी संतूर वादक पं.राजकुमार मजूमदार और गायकी और तंत्रकारी आंग यानी वाद्य और गायकी स्टाइल का अद्भुत मिश्रण प्रतिपादित करने वाले वायलिन के साधक उस्ताद असगर हुसैन ने शनिवार की शाम को उदयपुर ही नहीं समूचे मेवाड़ अंचल के शास्त्रीय संगीत प्रेमियों का दिल जीतने के साथ ही उन्हें एक घंटे तक दोनों साजों की अनूठी और बेमिसाल संगत से बांधे रखा। इतना ही नहीं, बीच-बीच में द्रुत ताल और हृदय में उतरती तान के पूरी होते ही जैसे ही लीन सुधी श्रोताओं की तंद्रा टूटती तो समूचा मंच तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता।
इन दोनों अजीम फनकारों ने राग चारुकेशी में आलाप के बाद विलंबित मत्त ताल (नौ मात्रा वाली) में बंदिश पेश कर खचाखच भरे मुक्ता काशी मंच में संगीत प्रेमियों को बांध-सा दिया और वे धुन में तल्लीन से हो गए। इसमें जब तिहाई के दौर चले तो करतल ध्वनि से शिल्पग्राम गूंज उठा। फिर जब उन्होंने राग चारुकेशी में ही मध्य लय तीन ताल और द्रुत लय तीन ताल में अगली बंदिश पेश की तो शास्त्रीय संगीत के कद्रदान बार-बार वाह-वाह करने लगे। इन दोनों उम्दा मूसीकारों (संगीतज्ञों) ने हर दिल अजीज राग पहाड़ी दादरा में रंगी सारी गुलाबी चुनरिया… की प्रस्तुति दी तो श्रोता सुध-बुध भुलाकर झूमने लगे। यानी मौसिकी ने उन्हें अपने रंग में पूरी तरह से रंग डाला। बता दें, इसी दिल में उतरने वाल राग पहाड़ी दादरा से निकले बॉलीवुड के गाने लग जा गले… और ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं… आज भी हर उम्र के संगीत प्रेमी की जुबां पर चढ़े हुए हैं। इस पेशकश में तान, खटका, गामक, मींड, सुव्यवस्थितता, सौंदर्य और रागों की पवित्रता के साथ ही लयकारी की विविधता ने तमाम श्राेताओं के लिए शाम को यादगार बना दिया।

ये ऐसे हो गई तिगुलबंदी-

इन दोनों संगीतज्ञों की संगत अधूरी ही रहती, अगर  वायलिन और संतूर के साथ तबले की ताल न होती। तो, तबले पर इनकी संगत की संगीत नाटक अकादमी अवॉर्डी प्रसिद्ध तबला वादक फर्रुखाबाद घराने के उस्ताद अख्तर हसन ने दोनों मशहूर मूसीकारों की संगत को ऊंचाइयां तो बख्शी ही, साथ ही अपनी जो अलग छाप छोड़ी और जो वाहवाही पाई, उसने इस जुगलबंदी को तिगुलबंदी बना दिया। यानी संतूर- वायलिन- तबला की संगत।

पूरिया कल्याण में जाय कहो उनसो… से मन मोहा सौरभ ने-

तिगुलबंदी से पूर्व पंडित कुन्दनमल शर्मा के शिष्य और बनारस, ग्वालियर और किराना घरानों से संबंध रखने वाले जयपुर के युवा शास्त्रीय गायक सौरभ वशिष्ठ ने इस सुरमई शाम की छटा और भी संगीतमय बना दी जब उन्होंने राग पूरिया कल्याण में ‘जाय कहो उनसो…’ रचना विलंबित एकताल में प्रस्तुत की। उनकी दिलकश आवाज से शायद ही कोई संगीत प्रेमी होगा, जो सम्मोहित न हुआ हो। उन्होंने तीन ताल में द्रुत रचना ‘बहुत दिन बीते अजहूं ना आए श्याम…’ की प्रस्तुति से महान शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी के युवावस्था के दिनों की याद ताजा कर दी। इसके बाद सौरभ वशिष्ठ ने राग मेघ मल्हार में ‘गरज – गरज आज मेघ…’ की प्रस्तुति देकर खूब तालियां बटाेरी।

मंच संचालन डॉ. श्रुति टंडन ने बहुत ही शिद्दत से किया।
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आज अंतिम दिन के आकर्षण:

प्रसिद्ध केडिया बंधु की जुगलबंदी-

पश्चिम  क्षेत्र संस्कृति केंद्र,  उदयपुर के निदेशक फुरकान खान ने बताया कि ‘ऋतु बसंत’ उत्सव में रविवार को सितार और सरोद की कर्णप्रिय जुगलबंदी बेमिसाल रहेगी। सितार-सरोद वादन के पुरोधा केडिया बंधु आकाशवाणी के झारखंड से एकमात्र टाॅप ग्रेड कलाकार हैं। इन्होंने तबला सम्राट पं. किसन महाराज, पं. गुदई महाराज, उस्ताद जाकिर हुसैन जैसे कलाकारों के साथ काफी सफलता से मंच साझा किए हैं।

नृत्य स्तुति:

देश के जाने-माने कोरियोग्राफर संतोष नायर के निर्देशन में नृत्य स्तुति के रूप में शास्त्रीय नृत्यों का खूबसूरत गुलदस्ता पेश किया जाएगा। इसमें गणेश वंदना, हमारी विरासत (भरतनाट्यम, कथक, ओड़िसी और छाउ का मिश्रण), शिव-सूर्य उपासना, कथकली और मोहिनीयट्टम का फ्यूजन के साथ ही  मयूरभंज छाउ नृत्य पेश किया जाएगा।

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