महाराणा प्रताप पर ऑनलाइन स्मरणांजलि कार्यक्रम में प्रताप का पुण्य स्मरण
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उदयपुर, 20 फरवरी। महाराणा प्रताप न केवल मेवाड़ बल्कि पूरे देश के स्वाधीनता नायक के रूप में जाने जाते हैं और संसार उनसे इसी रूप में प्रेरणा पाता है। वे अपने अमर मूल्यों के लिए मानव मात्र के लिए सदा सर्वदा प्रेरक हैं। यह बात माघ शुक्ल एकादशी पर महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित ऑनलाइन महाराणा प्रताप स्मरणांजलि में वक्ताओं ने कही।
शोधकर्ता प्रो. चंद्रशेखर शर्मा ने कहा कि पितामह भीष्म और प्रातः स्मरणीय प्रताप की पुण्यतिथि एक ही दिन, जया एकादशी को पड़ती है। यदि भीष्म अपनी प्रतिज्ञा के लिए जाने जाते हैं तो प्रताप भी अपने दृढ़ संकल्प और मजबूत इरादों के लिए जाने जाते हैं। महाराणा और मेवाड़ यदि पर्याय है तो उसके मूल में प्रताप हैं। चित्तौड़गढ़ की उनके व्यक्तित्व विकास में अहम भूमिका रही है। महाराणा प्रताप सर्किट में चित्तौड़ को भी शामिल किया जाना चाहिए। अपनी आधी आयु तक प्रताप का चित्तौड़ से संबंध रहा। डूंगरपुर, गोड़वाड और देवलिया अभियान प्रताप ने चित्तौड़गढ़ से ही किए और खुद को सफल सिद्ध किया। वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. राजेंद्र नाथ पुरोहित का कहना था कि महाराणा प्रताप मेवाड़ के यश और कीर्ति के शिखर नायक हैं। उनका इतिहास मेवाड़ में उच्च शिक्षा में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि सतत अध्ययन और अनुसंधान होता रहे। इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण “जुगनू“ का मत था कि मेवाड़ के गांव गांव महाराणा प्रताप से महिममय रहे हैं। उनके अभिलेख और प्रेरक प्रसंग नई पीढ़ी के लिए हमेशा प्रेरक रहेंगे। महाराणा प्रताप के नाम पर अमरसिंह ने राशमी में प्रतापेश्वर महादेव मंदिर बनवाया, मिश्रों की पीपली के चक्रपाणि मिश्र ने वैज्ञानिक साहित्य रचा। महाराणा प्रताप कालीन साहित्य हमेशा संसार के लिए कल्याणकारी बना रहेगा। इस दौर शोधार्थी मोहित शंकर सिसोदिया, गोपाल लाल और वासुदेव बुनकर ने भी विचार रखे और भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
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फोटो केप्शन : ऑनलाइन संगोष्ठी। महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित ऑनलाइन महाराणा प्रताप स्मरणांजलि कार्यक्रम में जुड़े वक्ता।
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