उदयपुर, 19 फरवरी। रचनाकार अपनी रचनाओं में अपने आसपास की गतिविधियों को देखता हैं और समाज व राष्ट्र के समक्ष आ रही विसंगतियों और चुनौतियों को परख कर अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करता है। डॉ. जयप्रकाश भाटी ’नीरव’ की कृति ’मन में उठते प्रश्न’ में उन्होंने अपने जीवन, अपनी समीप की प्रवृत्तियों और समाज में उठ रहे प्रश्नों पर तर्क संगत लिखा है। मुख्य अतिथि प्रसिद्ध लोककलाविद् डॉ. महेन्द्र भाणावत ने कस्तूरबा मातृ मंदिर :डॉ. आत्म प्रकाश भाटी अस्पताल सभागार में आयोजित समारोह में डॉ. जयप्रकाश भाटी ’नीरव’ की सद्य प्रकाशित कृति ’मन में उठते प्रश्न’ का लोकार्पण करते हुए यह विचार रखे। डॉ. भानावत ने कहा कि यह कृति अनेक विषयों को समेटे हुए है जिनमें व्यक्तित्व व कृतित्व, भाषा और साहित्य आदि अनेक विषय हैं। उन्हें इस प्रकाशन पर बहुत-बहुत बधाई है। समारोह में विशिष्ट अतिथि एडवोकेट मनीष श्रीमाली ने कहा कि यह कृति हमें सोचने-समझने के लिए धरातल देती है और गंभीर चिंतन के लिए विवश करती है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व सचिव डॉ. लक्ष्मीनारायण नन्दवाना ने कहा कि डॉ. जयप्रकाश भाटी सुलझे हुए रचनाकार हैं वे गद्य और पद्य दोनों विद्याओं में अपना गंभीर लेखन कर रहे हैं। यह कृति ’मन में उठते प्रश्न’, सोचने समझने के लिए हमें बहुत सामग्री देती है। कृति में लगभग 28 आलेख हैं और वे रेखाचित्र, संस्मरण, ललित निबंध, नाटक आदि विधाओं से संबंधित है। प्रो. लक्ष्मी लाल वर्मा टखमण संस्थापक ने कृति पर विचार प्रकट करते हुए इसे महत्वपूर्ण विचारपरक बताया।
प्रारंभ में लेखक डॉ. जयप्रकाश भाटी ने स्वागत करते हुए अपनी रचना प्रकिया की जानकारी देते हुए कृति में सम्मिलित आलेखों के संबंध में बताया। अंत में संयोजिका डॉ. अंजना गुर्जरगौड़ ने धन्यवाद ज्ञापित किया आयोजन में डॉ. भावना शर्मा, दुर्गाशंकर गर्ग, मंजु गुर्जर, कैलाश आदि उपस्थित थे।